भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) की दिल्ली राज्य कमेटी की ओर से आज उत्तर-पूर्वी दिल्ली की साम्प्रदायिक हिंसा के एक साल पूरे होने पर प्रेस-कॉन्फ्रेंस के आयोजन किया गया। एक साल बीत जाने के बाद भी साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार परिवारों को न्याय नहीं मिला। इस प्रेस-कॉन्फ्रेंस में साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार हुए कई परिवार के सदस्यों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित होकर अपनी-अपनी व्यथा प्रेस के बीच रखी। उन्होंने साफ साफ कहा कि साम्प्रदायिक हिंसा में शामिल अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही करने की बात तो दूर पुलिस ने उन अपराधियों के खिलाफ मामला भी नहीं दर्ज किया है। उल्टा पुलिस चश्मदीद गवाहों को ही धमकाने का काम कर रही है। उन्होंने करावलनगर क्षेत्र के भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट का नाम लेकर उनके साम्प्रदायिक हिंसा में नेतृत्वकारी भूमिका की बात भी रखी। हिंसा का शिकार हुए परिवार के सदस्यों ने प्रेस से अपील करते हुए कहा कि इस नाउम्मीदी के दौर में प्रेस अभी भी हमारे लिए एक उम्मीद है। प्रेस हमारी बात जरूर उठाए।
सीपीआई(एम) की पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि गृह मंत्री अमित शाह और दिल्ली पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा को जानबूझकर रोकने का प्रयास नहीं किया। दिल्ली पुलिस वास्तव में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए हस्तक्षेप नहीं कर रही थी, खासकर उन स्थानों पर जहाँ अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे थे। भाजपा ने अपना शब्दकोश बदल दिया है, उसमें कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं की अभद्र भाषा एवं राष्ट्रविरोधी कार्य को देशभक्तिपूर्ण कार्य माना जाता है। उन्होंने कहा कि भाजपा अपनी नीतियों के खिलाफ किसी भी असंतोष या विरोध को खत्म करना चाहती है, चाहे वह सीएए हो या कृषि कानून। उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली पुलिस ने पीड़ितों / मृतक के बयान को दर्ज करने से इनकार कर दिया है। इसके बजाय दिल्ली पुलिस द्वारा पीड़ितों के परिवारों को धमकी दी जा रही है और अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं को झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है। केवल एक स्वतंत्र जांच ही उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा की सच्चाई को उजागर कर सकती है। उन्होंने आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार के द्वारा पीड़ित परिवारों की मदद में हो रही कमी को रेखांकित किया। 18 साल की उम्र के होने के कारण चार मृतक परिवारों को मात्र 5 लाख दिया गया है जो किसी भी तरह से ठीक नहीं। सहायता से ज्यादा जरूरी है कि जिन परिवारों में कमाने वाले सदस्य की हत्या हो गई है, उनके आश्रितों को जीवन-यापन में मदद दी जाए। उन्होंने दिल्ली सरकार से इस संदर्भ में तुरंत योजना लाने की मांग की।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के साम्प्रदायिक हिंसा पर सीपीआई(एम) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद भी आज वितरित किया गया।